उपग्रह प्रक्षेपक (Satellite Launch Vehicles)

                      उपग्रह प्रक्षेपक (Satellite Launch Vehicles)



उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षाओं में स्थापित करने के लिए उपग्रह प्रक्षेपकाें (Satellite Launch Vehicles) का उपयोग किया जाता है । उपग्रह प्रक्षेपक का कार्य न्यूटन के गतिविषयक तीसरे नियम पर आधारित है । प्रक्षेपक में विशिष्ट प्रकार के ईंधन का उपयोग करते हैं । इस ईंधन के ज्वलन से निर्माण होनेवाली गैसें गर्म होने के कारण प्रसारित होती है और प्रक्षेपक की पूँछ की ओर से प्रचंड वेग से बाहर निकलती हैं । इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप प्रक्षेपक पर एक ‘धक्का’ (Thrust) कार्यकरता है । प्रक्षेपक पर लगनेवाले धक्केके कारण प्रक्षेपक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित होता है । उपग्रह का भार कितना है और वह कितनी ऊँचाई पर स्थित कक्षा में प्रस्थापित करना है इसके अनुसार प्रक्षेपक की रूपरेखा निश्चित की जाती है । प्रक्षेपक को लगनेवाला ईंधन भी इसी आधार पर निश्चित किया जाता है । वास्तव में प्रक्षेपक में ईंधन का ही भार बहुत अधिक होता है । अतः प्रक्षेपक को प्रक्षेपित करते समय उसके साथ ईंधन के बहुत अधिक भार को भी वहन करना पड़ता है । अतः इसके लिए खंडों में बने हुए प्रक्षेपक का उपयोग करते हैं । इस युक्ती के कारण प्रक्षेपक ने उड़ान भरने के पश्चात क्रमशः उसका भार भी कम करते बनता है । उदाहरणार्थ, माना कोई प्रक्षेपक दो खंडो वाला है |  

  प्रक्षेपक की उड़ान के लिए पहले खंड का ईंधन और इंजिन का उपयोग किया जाता है । इससे प्रक्षेपक को एक निश्चित वेग और ऊँचाई प्राप्त होती है । इस पहले खंड का ईंधन समाप्त होने के पश्चात खाली टंकी और इंजिन प्रक्षेपक से मुक्त होकर नीचे समुद्र में या निर्जन स्थान पर गिर जाते हैं । पहले खंड का ईंधन समाप्त होते ही दूसरे खंड का ईंधन प्रज्ज्वलित हो जाता है । अब प्रक्षेपक में केवल दूसरा खंड होने के कारण उसका भार बहुत कम हो जाता है और वह अधिक वेग से सफर कर सकता है । सामान्यतः सभी प्रक्षेपक ऐसे दो या अधिक खंडो से बने होते हैं । 

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