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विद्युत ऊर्जा की निर्मिती (Generation of electrical energy)

     अनेक विद्युत निर्मिती केन्द्रो में विद्युत ऊर्जा तैयार करने के लिए मायकेल फैराड़े इस वैज्ञानिक द्वारा खोजे गए विद्युत-चुंबकीय प्रेरण (Electro-magnetic induction) इस सिद्धांत का उपयोग किया जाता है । इस सिद्धांत के अनुसार विद्युत वाहक तार के आसपास का चुंबकीय क्षेत्र बदलने पर विद्युत वाहक तार में विभवांतर का निर्माण होता है।      विद्युत वाहक तार के आसपास का चुंबकीय क्षेत्र दो प्रकार से बदल जा सकता है । विद्युत वाहक तार स्थिर हो और चुंबक घूमता रहे तो विद्युत वाहक तार के आसपास का चुंबकीय क्षेत्र बदल जाता है या चुंबक स्थिर हो और विद्युत वाहक तार घूमती हो तो भी विद्युतवाहक तार के आसपास का चुंबकीय क्षेत्र बदल जाता है, अर्थात इन दोनों ही तरीकों से विद्युत वाहक तार में विभवांतर का निर्माण हो सकता है । (आकृति  देखिए) इस सिद्धांत पर आधारित विद्युत निर्मिती करनेवाले यंत्र को विद्युत जनित्र (electric generator) कहते हैं ।     विद्युत निर्मिती केन्द्रों में इस प्रकार के बड़े जनित्रों का उपयोग किया जाता है । जनित्र के चुंबक को घूमाने के लिए टर्बाइन (Turbine) का उपयोग करते हैं । टर्बाइन में पातें (

उत्क्रांती (Evolution)

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       उत्क्रांती अर्थात सजीवोंं में अत्यंत धीमी गति से होनेवाला क्रमिक परिवर्तन है । यह प्रक्रिया अत्यंत धीमी एवं सजीवोंं का विकास साध्य करनेवाली प्रक्रिया है । अंतरिक्ष के ग्रह-तारों से लेकर पृथ्वी पर विद्यमान सजीव सृष्टी में होनेवाले परिवर्तन के अनेक चरणों का विचार उत्क्रांती अध्ययन में करना आवश्यक है ।      प्राकृतिक चयन की अनुक्रिया के लिए सजीवोंं के किसी एक वर्ग (जाति) के विशिष्ट लक्षणों में अनेक पीढ़ियों तक परिवर्तन होने की जिस प्रक्रिया द्वारा अंत में नई प्रजातियों का निर्माण होता है, उस प्रक्रिया को उत्क्रांती कहते है।    करीब-करीब साड़े तीन अरब वर्षपूर्व (350 करोड़़ वर्षपूर्व) पृथ्वी पर किसी भी प्रकार के सजीवोंं का अस्तित्व नहींं था । प्रारंभ में अत्यंत सरल-सरल तत्त्व रहे होंगेंऔर उनसे जैविक तथा अजैविक प्रकार के सरल-सरल यौगिक बने होंगे । उनसे धीरे-धीरे जटिल जैविक यौगिक जैसे प्रथिन और केन्द्रकाम्ल निर्मित हुए होंगे । ऐसे अलग-अलग प्रकार के जैविक और अजैविक पदार्थों के मिश्रण से मूल स्वरुप के प्राचीन कोशिकाओं का निर्माण हुआ होगा । प्रारंभ में आसपास के रसायनों का भक्षण कर उनकी संख्या

चंद्र अभियान (Moon missions)

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 चंद्र अभियान (Moon missions)                चंद्रमा यह हमारे लिए सबसे नजदीकी खगोलीय पिंड होने के कारण सौरमंडल के घटकों की ओर भेजे हुए अभियानों में ये सबसे पहले अंतरिक्ष अभियान है । ऐसे अभियान आज तक सोव्हियत युनियन, अमेरिका, युरोपियन देश, चीन, जपान और भारत ने जारी किए हैं । सोवियत यूनियन ने भेजी हुई लूना श्रृंखला के अंतरिक्ष यान चंद्रमा के नजदीक पहुँचे थे । 1959 में प्रक्षेपित किया गया लूना 2 यह ऐसा ही पहला यान था । इसके पश्चात 1976 तक भेजे गए 15 यानों ने चंद्रमा का रासायनिक विश्लेषण किया और उसके गुरुत्व, घनत्व तथा चंद्रमा से निकलने वाले प्रारणों का मापन किया । अंतिम 4 यानों ने वहाँ के पत्थरों के नमुने पृथ्वी पर स्थित प्रयोगशालाओं में अध्ययन करने के लिए लाए । ये अभियान मानवरहित थे ।                  अमेरिका ने भी 1962 से 1972 में चंद्र अभियान जारी किए । उसकी विशेषता यह थी उनके कुछ यानों द्वारा मानव भी चंद्रमा पर उतरे । जुलाई 1969 में नील आर्मस्ट्राँग ये चंद्रमा पर कदम रखनेवाले प्रथम मानव बने । सन्2008 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चंद्रयान-1 का सफल प्रक्षेपण किया और वह य

पानी का असंगत व्यवहार (Anomalous behaviour of water )

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 पानी का असंगत व्यवहार (Anomalous behaviour of water )       सामान्यतः द्रव को सीमित तापमान तक गर्मकरने पर उनका प्रसरण होता है तथा ठंड़ा करने से उनका संकुचन होता है। परंतु पानी विशिष्ट तथा अपवादात्मक व्यवहार दर्शाता है। 0० C तापमान के पानी को गर्मकरने पर 4० C तापमान होने तक पानी का प्रसरण न होकर संकुचन होता है । 4० C पर पानी का आयतन सबसे कम होता है और 4० C से अधिक तापमान में वृदि्ध करने पर पानी का आयतन बढ़ता जाता है । 0० C से 4 ०C इस तापमान के बीच होनेवाले पानी के इस व्यवहार को ‘पानी का असंगत व्यवहार’ कहते है ।        1 kg द्रव्यमान के पानी को 0० C से ऊष्मा देकर तापमान तथा आयतन नोट करके आलेख बनाने पर, संलग्न अाकृति में दर्शाएनुसार वह वक्र होगा । इस वक्र आलेख से यह स्पष्ट होता है की 0 ०C से 4 ०C तक पानी का तापमान बढ़ने से उसका आयतन बढ़ने के बजाए कम होता है । 4 ०C पर पानी का आयतन सबसे कम होता है अर्थात पानी का घनत्व 4 ०C पर सबसे अधिक होता है । (देखिए 5.4)  होप के उपकरण की सहायता से पानी के असंगत व्यवहार का अध्ययन करना । पानी के असंगत व्यवहार का अध्ययन होप के उपकरण की सहायता से करते हैं ।

विद्युत चलित्र (Electric Motor)

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         ऊर्जाके विविध रूप आपको पता हैं । आपको यह भी पता है कि ऊर्जा का रूपांतरण हो सकता है विद्‌युत ऊर्जा का यांत्रिक ऊर्जा मे रूपांतरण करने वाले यंत्र को विद्‌युत चलित्र कहते है । हमारे आसपास दैनिक जीवन में इस विद्‌युत चलित्र को वरदान ही कहा जा सकता है । इसका उपयोग पंखे, प्रशीतक, मिक्सर, धुलाई यंत्र, संगणक, पंप में किया हुआ िदखता है ? यह विद्‌युत चलित्र कैसे कार्यकरता है?      विद्‌युत चलित्र में विद्‌युत अवरोधक आवरण वाले ताँबे के तार की एक आयताकार कुंडली होती है । यह कुंडली, चुंबक के (उदा. नाल चुंबक) उत्तर और दक्षिण ध्रुवों के बीच, आकृति में दिखाए अनुसार इस प्रकार रखी होती है कि उसकी AB तथा CD भुजाएँ चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत होती हैं । कुंड़ली के दो सिरे विभक्त वलय के दो अर्धभागों X तथा Y से संयोजित होते हैं । इन अर्धभागों की भीतरी सतह विद्युतरोधी होती है तथा चलित्र की धूरी से जुड़ी होती है । X तथा Y अर्धवलयों के बाहरी विद्‌युत वाहक पृष्ठभाग दो स्थिर कार्बन ब्रश E तथा F से स्पर्शकरते   हैं ।   आकृति में दर्शाए अनुसार, विद्‌युत परिपथ पूर्णकरने पर विद्युतधारा E तथा F कार्बन ब्रश

फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम (Fleming’s right hand rule )

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  फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम       विद्‌युतचालक (कड़ुं ली) में विद्‌युत धारा अधिक से अधिक कब होगी? तो जब विद्‌युत चालक की गति की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की लंब दिशा में होगी तब यह दिखाने के लिए फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियम का उपयोग होता है ।दाएँ हाथ के अंगूठे, तर्जनी आैर मध्यमा को इस प्रकार रखिए कि वे परस्पर लंब हो । (आकृती 4.17) । इस स्थिति में यदि अंगूठा विद्‌युत चालक के गति की दिशा, तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा दर्शाए तो मध्यमा प्रेरित विद्‌युत धारा की दिशा दर्शाता है, इस नियम को फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम कहते है ।

परिनालिका में से प्रवाहित होनेवाली विद्युत धारा द्‌वारा निर्माण होनेवाला चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic field due to a current in a solenoid)

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    विद्‌युत अवरोधक आवरण वाली ताँबे की तार लेकर तार के फेरों से कुंड़ली तैयार करने पर बननेवाली रचना को परिनालिका (Solenoid) कहते हैं । परिनालिका में से विद्‌युत धारा प्रवाहित होनेपर निर्मित होनेवाली चुंबकीय बल रेखाओं की संरचना आकृति 4.9 में दर्शायी गई है । छड़चुंबक की चुंबकीय बलरेखाओं से आप परिचित है ही । परिनालिका द्‌वारा निर्मित होनेवाले चुंबकीय क्षेत्र के सभी गुणधर्म छड़चुंबकद्‌वारा निर्मित होनेवाले चुंबकीय क्षेत्र के गुणधर्मों के समान होते हैं । पलिनालिका का एक खुला सिरा चुंबकीय उत्तरी ध्रुव के रूप में तथा दूसरा चुंबकीय दक्षिण ध्रुव के रूप में कार्य करता है । पलिनालिका की चुंबकीय बल रेखाएँ परस्पर समांतर रेखाओं के स्वरूप में होती हैं । इसका क्या अर्थ होता है? यही कि चंुबकीय क्षेत्र की तीव्रता परिनालिका के आंतरिक भाग में सर्वत्र समान होती है, अर्थात परिनालिका के अंदर चुंबकीय क्षेत्र एक समान होता है । 

धातु-अधातु गुणधर्म (Metallic - Nonmetallic character)

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 1. आधुनिक आवर्त सारणी के तृतीय आवर्तका निरीक्षण कीजिए और उनका धातू एवं अधातुओं मे वर्गीकरण कीजिए ।  2. धातुएँ आवर्त सारणी के किस ओर है? बाएँ या दाएँ?  3. आपको अधातुएँ आवर्त सारणी के किस ओर दिखाई दिए ।  ऐसा दिखाई देता है की सोड़ियम, मॅग्नेशियम ऐसे धातु तत्त्व बाईं ओर है । सल्फर और क्लोरीन जैसे अधातु तत्त्व आवर्तसारणी के दाहिनी ओर हैं । इन दोनों प्रकारों के मध्य सिलिकॉन यह धातुसदृश तत्त्व है । इसी प्रकार का संबंध दूसरे आवर्तों मे भी दिखाई देता है ।  आधुनिक आवर्तसारणी में एक टेढ़ी-मेढ़ी रेखा धातुओं को अधातुओं से अलग करती है, ऐसा दिखाई देता है । इस रेखा के बाईं ओर धातु, दाईं ओर अधातु और रेखा के किनारों पर धातुसदृश इस प्रकार से तत्त्वों की आधुनिक आवर्तसारणी मे व्यवस्था की गई है ऐसा दिखाई देता है, यह किस कारण हुआ?  धातु और अधातुओं के विशिष्ट रासायनिक गुणधर्मो में अंतर करके देखें । सरल आयनिक यौगिकों के रासायनिक सूत्रों से ऐसा दिखाई देता है, कि उनमे पाया जानेवाला धन आयन यह धातु से तो ऋणआयन अधातु से बना है । इससे यह स्पष्ट होता है की धातु के परमाणु की प्रवृत्ती स्वयं के संयोजकता इलेक्ट्रॉन खोकर ध

न्यूलँड के अष्टकाें का नियम (Newlands’ Law of Octaves)

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 न्यूलँड के अष्टकाें का नियम (Newlands’ Law of Octaves) अंग्रेज रसायन वैज्ञानिक जॉन न्यूलँड्स ने एक अलग ही मार्ग से परमाणु द्रव्यमान का सहसंबंध तत्त्वों के गुणधर्म से जोड़ा। सन 1866 में न्यूलैंड ने उस समय ज्ञात सभी तत्त्वों को उनके परमाणु द्रव्यमानों के आरोही क्रम में रखा । इसकी शुरूआत सबसे हल्के तत्त्व हाइड्रोजन तो अंत थोरियम इस तत्त्व से हुआ । उन्होंने पाया की प्रत्येक आठवें तत्त्व का गुणधर्म यह पहले तत्त्व के गुणधर्मके समान होता है । जैसे सोडियम यह लिथियम से आठवें क्रमांक का तत्त्व होकर इन दोनों के गुणधर्म समान है । उसी प्रकार मॅग्नेशियम की बेरीलियम से समानता है, तो फ्लोरिन की क्लोरीन के साथ समानता है । न्यूलैंड्स ने इस समानता की तुलना संगीत के अष्टक से की । उसने आठवें तथा पहले तत्त्व के गुणधर्म मे पाए जानेवाली समानता को अष्टक का नियम कहा है । न्यूलँड के अष्टकाें का नियम (Newlands’ Law of Octaves)  न्यूलैंड्स के अष्टक नियम में बहुत सारी त्रुटियाँ सामने आई । यह नियम केवल कॅल्शियम तत्त्व तक ही लागू होता है । न्यूलैंड ने ज्ञात सभी तत्त्वो को 7 x 8 इस 56 स्तंभो की सारणी में व्यवस्थित किय

गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)

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गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)  सर आयझॅक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण की खोज की, यह आपको पता ही है । ऐसा कहा जाता है कि वृक्ष से नीचे गिरता हुआ सेब देखने के कारण उन्होंने यह खोज की । उन्होने सोचा कि सभी सेब (लंबवत दिशा में) सीधे नीचे ही क्यों गिरते हैं? तिरछे क्यों नही गिरते? या क्षितिज के समांतर रेखा में क्यों नहीं जाते? अत्यंत विचारमंथन करने के पश्चात्उन्होंने निष्कर्ष निकाला की पृथ्वी सेब को अपनी ओर आकर्षित करती होगी और इस आकर्षण बल की दिशा पृथ्वी के केंद्र की ओर होगी । वृक्ष के सेब से पृथ्वी के केंद्र की ओर जानेवाली दिशा क्षैतिज के लंबवत होने के कारण सेब वृक्ष से क्षैतिज के लंबवत दिशा में नीचे गिरता है । गुरुत्वाकर्षण बल की कल्पना और सेब एवं चंद्रमा पर लगनेवाला गुरुत्वीय बल   आकृति  में पृथ्वी पर सेब का एक वृक्ष दिखाया गया है । सेब पर लगनेवाला बल पृथ्वी के केन्द्र की दिशा में होता है अर्थात सेब के स्थान से पृथ्वी के पृष्ठभाग पर लंब होता है । आकृति में चंद्रमां और पृथ्वी के बीच का गुरुत्वाकर्षण बल भी दिखाया गया है । (आकृति में दूरियाँ, पैमाने के अनुसार नहीं दिखाई गई हैं । ) ्यूटन ने सोचा कि

गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा (Gravitational potential energy)

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गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा (Gravitational potential energy) पिंड की विशिष्ट स्थिति के कारण या स्थान के कारण उसमें समाविष्ट ऊर्जाको स्थितिज ऊर्जाकहते हैं । यह ऊर्जा सापेक्ष होती है और पृष्ठभाग से पिंड की ऊँचाई बढ़ने पर वह बढ़ती जाती है, इसकी जानकारी हम प्राप्त कर चुके हैं । m द्रव्यमान तथा पृथ्वी के पृष्ठभाग से h ऊँचाई पर स्थित पिंड की स्थितिज ऊर्जा mgh होती है और पृथ्वी के पृष्ठभाग पर वह शून्य होती है, ऐसा हमने देखा है । h का मान पृथ्वी की त्रिज्या की तुलना में अत्यंत कम होने के कारण g का मान हम स्थिर मान सकते है और उपर्युक्त सूत्र का उपयोग कर सकते हैं । परंतु h का मान अधिक होने पर g का मान ऊँचाई के अनुसार कम होते जाता है । पिंड पृथ्वी से अनंत दूरी पर होने पर g का मान शून्य होता है और पिंड पर पृथ्वी का गुरूत्वीय बल कार्य नहीं करता । इस कारण वहाँ पिंड की गुरूत्वीय स्थितिज ऊर्जा शून्य मानी जाती है । अतः दूरी उससे कम होने पर स्थितिज ऊर्जा ऋण होती   है ।        पिंड पृथ्वी के पृष्ठभाग से h ऊँचाई पर स्थित होने पर उसकी गुरूत्वी स्थितिज ऊर                  GMm         R + h              के बराबर ह

गुरुत्वीय लहरें (Gravitational waves)

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गुरुत्वीय लहरें (Gravitational waves)  पानी में पत्थर डालने पर उसमें लहरें निर्मित होती हैं, इसी प्रकार एक रस्सी के दोनों सिरों को पकड़कर हिलाने पर उसपर भी लहरे निर्मित होती हैं, यह आपने देखा ही होगा । प्रकाश भी एक प्रकार की तरंग है, उसे विद्‌युतचुंबकीय तरंग कहते हैं । गामा किरण, क्ष- किरण, पराबैंगनी किरण, अवरक्त किरण, माइक्रोवेव्ह और रेडिओ तरंग ये सभी विद्‌युतचुंबकीय तरंग के ही विविध प्रकार हैं । खगोलीय पिंड ये तरंगे उत्सर्जित करते हैं और हम अपने उपकरणों द्‌वारा उन्हें ग्रहण करते हैं । विश्व के बारे में संपूर्ण जानकारी हमें इन तरंगों के द्‌वारा प्राप्त हुई है । गुरूत्वीय तरंगे एकदम अलग प्रकार की तरंगे हैं, उन्हें अंतरिक्ष काल की तरंगे कहा जाता है । उनके अस्तित्व की संभावना आईनस्टीन 1916 में व्यक्त की थी । ये तरंगें अत्यंत क्षीण होने के कारण उन्हें खोजना अत्यंत कठिन होता है । खगोलीय पिंडों में से उत्सर्जित गुरूत्वीय तरंगों को खोजने के लिए वैज्ञानिकों ने अत्यंत संवेदनशील उपकरणों को विकसित किया है । इसमें LIGO (Laser Interferometric Gravitational Wave Observatory.) प्रमुख है । वैज्ञानिकों

फ्लेमिंग का बाएँ हाथ का नियम (Fleming’s left hand rule)

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फ्लेमिंग का बाएँ हाथ का नियम (Fleming’s left hand rule) उपर्युक्त प्रयोग में हमने विद्‌युत धारा की दिशा और चुंबकीय क्षेत्र की दिशा दोनों की ओर ध्यान दिया और ऐसा दिखाई दिया की बल की दिशा इन दोनों के लंबवत हैं । इन तीनों की दिशा एक सरल नियम के द्‌वारा सुबद्ध की जा सकती है । इस नियम को ही फ्लेमिंग के बाएँ हाथ का नियम कहते हैं । इस नियम के अनुसार बाएँ हाथ के अंगूँठे, तर्जनी और मध्यमा को एक दूसरे के लंबवत रखे और यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में हो, मध्यमा विद्‌युतधारा की दिशा में हो तो अंगूठे की दिशा विद्‌युत चालक पर बल की दिशा दर्शाती है ।  

पर्यावरण संवर्धन तथा जैवविविधता (Environmental conservation and Bio-diversity)

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पर्यावरण संवर्धन तथा जैवविविधता (Environmental conservation and Bio-diversity) पर्यावरणीय प्रदूषण का सबसे घातक परिणाम सजीवोंं पर होता है । आपके आसपास (परिसर में ं) इस प्रकार की घटनाओं को क्या आपने देखा है? पृथ्वीपर हमारी सजीवसृष्टि यह विविधताओं से भरी पड़ी है । इसमें विविध प्रकार की वनस्पतियों तथा प्राणियों का अस्तित्व था । आज हम देखते हैं की अपने पिछली पीढियों द्वारा सुने गए ऐसे विशिष्ट प्राणी देखने को नहीं मिलते । इसके लिए जिम्मेंदार कौन? प्रकृति में पाए जानेवाले एक ही जाति के सजीवोंं में व्यक्तिगत तथा आनुवांशिक भेद, सजीवोंं की जातियों के विविध प्रकार तथा विविध प्रकारों की परिसंस्थाएँ इन सभी के कारण उस स्थान पर प्रकृति को जो सजीवसृष्टि की समृद्धी प्राप्त हुई है उसे ही जैवविविधता कहते है । जैवविविधता यह तीन स्तरों पर दिखाई देती है । आनुवंशिक विविधता ः (Genetic Diversity)  एक ही जाति के सजीवोंं में पाई जाने वाली विविधता को आनुवांशिक विविधता कहते है। उदा. प्रत्येक मनुष्य दूसरे की अपेक्षा थोड़ा भिन्न होता है। पुनरुत्पादन प्रक्रिया में सहभागी होनेवाले सजीवोंं में ये आनुवांशिक विविधता कम हुई

आधुनिक आवर्त सारणी और तत्त्वों का इलेक्ट्रॉन संरूपण (Modern periodic table and electronic configuration of elements)

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 आधुनिक आवर्त सारणी और तत्त्वों का इलेक्ट्रॉन संरूपण (Modern periodic table and electronic configuration of elements) एक ही आवर्त में नजदीक पाए जानेवाले तत्त्वों के गुणधर्मों में थोड़ा सा अंतर होता है, परंतु अधिक दूर स्थित तत्त्वों के गुणधर्मों में अधिक अंतर पाया जाता है । एक ही समूह के सभी तत्त्वों के रासायनिक गुणधर्मों में समानता तथा श्रेणीबद्धता (Gradation) दिखाई देती है । आधुनिक आवर्त सारणी के समूह तथा आवर्तों की ये विशेषताएँ तत्त्वों के इलेक्ट्रॉनिक संरूपण के कारण हैं । किसी तत्त्व को आधुनिक आवर्त सारणी में किस समूह या आवर्त मे रखना है यह उसके इलेक्ट्रॉन संरूपण के आधार से स्पष्ट होता है । आधुनिक आवर्त सारणी में....  1. सभी तत्त्वों को उनके परमाणु क्रमांकों के आरोही क्रम मे रखा गया ।  2. ऊर्ध्वाघर स्तंभों को समूह कहते हैंकुल 18 समूह हैं एक ही समूह के सभी तत्त्वों के रासायनिक गुणधर्मों में समानता तथा श्रेणीबद्धता दिखाई देती है ।  3. क्षैतिज पंक्तियों को आवर्तकहते हैंकुल 7 आवर्त हैं किसी आवर्त में एक सिरे से दूसरे सिरे तक जाने पर तत्त्वों के गुणधर्मों मे क्रमशः परिवर्तन होता है  समूह

उपग्रह प्रक्षेपक (Satellite Launch Vehicles)

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                      उपग्रह प्रक्षेपक (Satellite Launch Vehicles) उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षाओं में स्थापित करने के लिए उपग्रह प्रक्षेपकाें (Satellite Launch Vehicles) का उपयोग किया जाता है । उपग्रह प्रक्षेपक का कार्य न्यूटन के गतिविषयक तीसरे नियम पर आधारित है । प्रक्षेपक में विशिष्ट प्रकार के ईंधन का उपयोग करते हैं । इस ईंधन के ज्वलन से निर्माण होनेवाली गैसें गर्म होने के कारण प्रसारित होती है और प्रक्षेपक की पूँछ की ओर से प्रचंड वेग से बाहर निकलती हैं । इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप प्रक्षेपक पर एक ‘धक्का’ (Thrust) कार्यकरता है । प्रक्षेपक पर लगनेवाले धक्केके कारण प्रक्षेपक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित होता है । उपग्रह का भार कितना है और वह कितनी ऊँचाई पर स्थित कक्षा में प्रस्थापित करना है इसके अनुसार प्रक्षेपक की रूपरेखा निश्चित की जाती है । प्रक्षेपक को लगनेवाला ईंधन भी इसी आधार पर निश्चित किया जाता है । वास्तव में प्रक्षेपक में ईंधन का ही भार बहुत अधिक होता है । अतः प्रक्षेपक को प्रक्षेपित करते समय उसके साथ ईंधन के बहुत अधिक भार को भी वहन करना पड़ता है । अतः इसके लिए खंडों में बने हुए

मानवीय उत्क्रांति (human evolution)

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      उत्क्रांति के कारण अत्यंत सरल एक कोशिकीय सजिवों से लेकर आज तक ज्ञात सभी जैव विविधताओं का सृजन हुआ दिखाई देता है|इसमें मानववंश की शुरुवात संझिप्त निम्न आकृति के द्वारा बदया गया है|करीब करीब सात करोड़ वर्ष - पूर्व जब अंतिम डायनासोर का विनाश हुआ तब बंदर के जैसे देखने वाले प्राणी उनसे भी अधिक प्राचीन ऐसे थोड़े बहुत आधुनिक लेम्यूर के जैसे दिखनेवाले प्राणियों से विकसित हुए होंगे|चार करोड़ वर्ष पूर्व आफ़्रिका के इस बंदर जैसे प्राणियों की पूंछे नष्ट हुई, उनके मस्तिष्क का आकार बड़ा होकर उनका विकास हुआ, हाथों के पंजों में सुधार हुआ तथा वे एप जैसे प्राणी बने| कालांतर में ये शुरुवात के एप जैसे प्राणी दझिन (south) तथा आग्नेय एशिया में पहुंचे तथा अंत में गिबन तथा ओरंग उटान में उनका रूपांतरण हुआ|शेष एप जैसे प्राणी आफ़्रीका में स्थाइ हुए तथा लगभग 2.50 करोड़ वर्ष पूर्व उनसे चिंपाझी तथा गोरिला का उदय हुआ| लगभग 2 करोड़ वर्ष पूर्व एप की कुछ जातियों का विकाश भिन्न रूप में होता हुआ दिखाई दिया|अन्न ग्रहण करके के लिए तथा अन्य कार्यों के लिए उनके हाथों का आधिक उपयोग होने लगा| Please comment me 

ऊर्जा (Energy)

ऊर्जा: ऊर्जा के दो प्रकार होते है| 1) गतिज ऊर्जा (kinetic Energy) गतिशील पिंड, स्थिर पिंड से टकराने पर स्थिर पिंड गतिशील हो जाता है,उसे गतिज ऊर्जा कहते हैं| 2) स्थितिज ऊर्जा (potential Energy) पदार्थ की विशिष्ट स्थिति के कारण या उसमें जो ऊर्जा समाविष्ट होती हैं उसे स्थितीज ऊर्जा कहते हैं|