उत्क्रांती (Evolution)

       उत्क्रांती अर्थात सजीवोंं में अत्यंत धीमी गति से होनेवाला क्रमिक परिवर्तन है । यह प्रक्रिया अत्यंत धीमी एवं सजीवोंं का विकास साध्य करनेवाली प्रक्रिया है । अंतरिक्ष के ग्रह-तारों से लेकर पृथ्वी पर विद्यमान सजीव सृष्टी में होनेवाले परिवर्तन के अनेक चरणों का विचार उत्क्रांती अध्ययन में करना आवश्यक है ।

     प्राकृतिक चयन की अनुक्रिया के लिए सजीवोंं के किसी एक वर्ग (जाति) के विशिष्ट लक्षणों में अनेक पीढ़ियों तक परिवर्तन होने की जिस प्रक्रिया द्वारा अंत में नई प्रजातियों का निर्माण होता है, उस प्रक्रिया को उत्क्रांती कहते है।



   करीब-करीब साड़े तीन अरब वर्षपूर्व (350 करोड़़ वर्षपूर्व) पृथ्वी पर किसी भी प्रकार के सजीवोंं का अस्तित्व नहींं था । प्रारंभ में अत्यंत सरल-सरल तत्त्व रहे होंगेंऔर उनसे जैविक तथा अजैविक प्रकार के सरल-सरल यौगिक बने होंगे । उनसे धीरे-धीरे जटिल जैविक यौगिक जैसे प्रथिन और केन्द्रकाम्ल निर्मित हुए होंगे । ऐसे अलग-अलग प्रकार के जैविक और अजैविक पदार्थों के मिश्रण से मूल स्वरुप के प्राचीन कोशिकाओं का निर्माण हुआ होगा । प्रारंभ में आसपास के रसायनों का भक्षण कर उनकी संख्या में वृद्‌धि हुई होगी । कोशिकाओं में थोड़ा़ बहुत अंतर होगा तथा प्राकृतिक चयन के सिद्धांतानुसार कुछ की अच्छी वृद्‌धि हुई होगी तो जो सजीव आसपास की परिस्थिती के साथ समायोजन स्थापित नहींं कर सके उनका विनाश हुआ होगा। 

   आज की तारीख में पृथ्वी तल पर वनस्पतियों एवं प्राणियों की करोड़ो प्रजातियाँ हैं, उनके आकार एवं जटिलता में काफी विविधताएँ हैं । सूक्ष्म एक कोशिकीय अमीबा, पॅरामिशियम से लेकर महाकाय देवमछली तक उनका विस्तार दिखाई देता है । वनस्पती में एककोशिकीय क्लोरेला से विस्तीर्ण बड़े बरगद के पेड़ तक अनेक प्रकार की वनस्पतियों की जातियाँ पृथ्वी पर विद्यमान है । पृथ्वी पर सभी जगह विषुववृत्त रेखा से दोनों ध्रुवों तक सजीवोंं का अस्तित्व दिखाई देता है । हवा, पाणी, जमीन, पत्थर इन सभी जगहों पर सजीव हैं । अतिप्राचीन काल से मानव को इस पृथ्वी पर सजीवोंं का निर्माण कैसे हुआ एवं उनमें इतनी विविधता कहाँ से आई होगी इस विषय में उत्सुकता है । सजीवोंं का उद्गम और विकास से संबंधित विविध उपपत्ती के सिद्धांत अाज तक प्रस्तुत किए गए हैं, इनमें से ‘सजीवोंं की उत्क्रांती अथवा सजीवोंं का क्रमविकास यह सिद्धांत सर्वमान्य हुआ

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