धातु-अधातु गुणधर्म (Metallic - Nonmetallic character)

 1. आधुनिक आवर्त सारणी के तृतीय आवर्तका निरीक्षण कीजिए और उनका धातू एवं अधातुओं मे वर्गीकरण कीजिए ।

 2. धातुएँ आवर्त सारणी के किस ओर है? बाएँ या दाएँ?

 3. आपको अधातुएँ आवर्त सारणी के किस ओर दिखाई दिए ।

 ऐसा दिखाई देता है की सोड़ियम, मॅग्नेशियम ऐसे धातु तत्त्व बाईं ओर है । सल्फर और क्लोरीन जैसे अधातु तत्त्व आवर्तसारणी के दाहिनी ओर हैं । इन दोनों प्रकारों के मध्य सिलिकॉन यह धातुसदृश तत्त्व है । इसी प्रकार का संबंध दूसरे आवर्तों मे भी दिखाई देता है । 

आधुनिक आवर्तसारणी में एक टेढ़ी-मेढ़ी रेखा धातुओं को अधातुओं से अलग करती है, ऐसा दिखाई देता है । इस रेखा के बाईं ओर धातु, दाईं ओर अधातु और रेखा के किनारों पर धातुसदृश इस प्रकार से तत्त्वों की आधुनिक आवर्तसारणी मे व्यवस्था की गई है ऐसा दिखाई देता है, यह किस कारण हुआ?

 धातु और अधातुओं के विशिष्ट रासायनिक गुणधर्मो में अंतर करके देखें । सरल आयनिक यौगिकों के रासायनिक सूत्रों से ऐसा दिखाई देता है, कि उनमे पाया जानेवाला धन आयन यह धातु से तो ऋणआयन अधातु से बना है । इससे यह स्पष्ट होता है की धातु के परमाणु की प्रवृत्ती स्वयं के संयोजकता इलेक्ट्रॉन खोकर धनायन बनने की होती है, इसे ही परमाणु की विद्‌युत धनात्मकता कहते है । इसके विपरीत अधातुओं के परमाणु की प्रवृत्ती बाहर के इलेक्ट्रॉन संयोजकता कवच में ग्रहण कर ऋणायन बनने की होती है । हमने इसके पहले भी देखा है, की आयनों को निष्क्रीय गैसीय तत्त्वों का स्थाई इलेक्ट्रॉनिक संरूपण होता है । संयोजकता कवच मे से इलेक्ट्रॉन खोने की अथवा संयोजकता कवच मे इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की परमाणु की क्षमता कैसे निश्चित होती है? किसी भी परमाणु के सभी इलेक्ट्रॉन उनपर धनावेशित केंद्रक के कारण प्रयुक्त होनेवाले आकर्षण बल के कारण परमाणु मे स्थिर होते है । संयोजकता कवक के इलेक्ट्रॉन और परमाणु केंद्रक के बीच स्थित अांतरिक कवचों मे भी इलेक्ट्रॉन पाए जाने के कारण संयोजकता इलेक्ट्रॉनों पर आकर्षणबल प्रयुक्त करने वाला परिणामी केंद्रकीय आवेश यह मूल केंद्रकीय आवेश की अपेक्षा थोड़ा कम होता है । धातुओं में पाए जानेवाले संयोजकता इलेक्ट्रॉन की कम संख्या (1 से 3) तथा इन संयोजकता इलेक्ट्रॉनों पर प्रयुक्त होनेवाला कम परिणामी केंद्रकीय बल इन दोनों घटकों के एकत्रित परिणाम के कारण धातुओं में संयोजकता इलेक्ट्रॉन खोकर स्थाई निष्क्रीय गैसीय संरूपण वाला बनने की प्रवृत्ती होती है । तत्त्वों की यह प्रवृत्ती अर्थात विद्‌युतधनता अर्थात उस तत्त्व का धात्विक गुणधर्म है ।



 आधुनिक आवर्त सारणी के स्थानाें से तत्त्वों के धात्विक गुणधर्मका आवर्ती झुकाव स्पष्ट रूप से समझ मे आता है।

   सर्व प्रथम किसी एक समूह के तत्त्वों के धात्विक गुणधर्मपर विचार करके देखें । किसी एक समूह में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर नई कक्षा का निर्माण होकर केंद्रक और संयोजकता इलेक्ट्रॉन इनमें अंतर बढ़ता जाता है । जिसके कारण परणामी केंद्रकीय आवेश बल कम होकर संयोजकता इलेक्ट्रॉन पर पाया जानेवाला आकर्षण बल कम होता है । जिसके कारण संयोजकता इलेक्ट्रॉन खो देने की परमाणु की प्रवृत्ती बढ़ती जाती है । उसी प्रकार संयोजकता इलेक्ट्रॉन खो देने पर अंतिम कवच के पहले वाला कवच बाह्यतम कवच बन जाता है । यह कवच पूर्ण अष्टक होने के कारण बनने वाले धनायन को विशेष रूप से स्थिरता प्राप्त होती है । जिसके कारण इलेक्ट्रॉन खो देने की प्रवृत्तीऔर भी बढ़ती जाती है । जिसके कारण इलेक्ट्रॉन त्यागने की परमाणु की प्रवृत्ती अर्थात धात्विक गुणधर्म । किसी भी समूह में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर तत्त्वों के धात्विक गुणधर्म में वृद्धी होने की आनति/झुकाव दिखाई देता है ।

एक ही आवर्त में बाएँ से दाहिनी ओर जाने पर बाह्यतम कवच वही रहता है । परंतु केंद्रक मे धनावेशित आयन में वृद्धी होने से और परमाणु त्रिज्या कम-कम होने से प्रयुक्त होनेवाले परिणामी केंद्रकीय बल में भी वृद्धी होती है । जिसके कारण संयोजकता इलेक्ट्रॉन खो देने की परमाणु की प्रवृत्ती कम-कम होती जाती है । अर्थात्आवर्त मे बाएँ से दाहिनी ओर जाने पर तत्त्वों के धात्विक गुणधर्मकम-कम होते जाते है । (तालिका  देखिए)

  किसी एक आवर्त में बाएँ से दाहिनीओर जाने पर बढ़ने वाले केंद्रकीय आवेश बलऔर कम-कम होने वाली परमाणु त्रिज्या इन दोनों घटकों के कारण संयोजकता इलेक्ट्रॉनों पर प्रयुक्त होनेवाला परिणामो केंद्रकीय आवेश बल बढ़ता है और संयोजकता इलेक्ट्रॉन अधिकाधिक आकर्षण बल से बद्ध होते हैं । इसी को परमाणु की विद्‌युतऋणात्मकता कहते हैं । किसी एक आवर्त में बाएँ से दाहिनीओर जाने पर बढ़नेवाली विद्‌युतॠणात्‍मकता के कारण बाहर से इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर पूर्ण अष्टक स्थिती मे ऋणायन बनाने की परमाणु की क्षमता बढ़ती है । तत्त्वों की ऋणायन बनाने की प्रवृत्ती अथवा विद्‌युत ऋणता अर्थात तत्त्वों का अधात्विक गुणधर्म ।

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