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पर्यावरणीय प्रदूषण का सबसे घातक परिणाम सजीवोंं पर होता है । आपके आसपास (परिसर में ं) इस प्रकार की घटनाओं को क्या आपने देखा है? पृथ्वीपर हमारी सजीवसृष्टि यह विविधताओं से भरी पड़ी है । इसमें विविध प्रकार की वनस्पतियों तथा प्राणियों का अस्तित्व था । आज हम देखते हैं की अपने पिछली पीढियों द्वारा सुने गए ऐसे विशिष्ट प्राणी देखने को नहीं मिलते । इसके लिए जिम्मेंदार कौन? प्रकृति में पाए जानेवाले एक ही जाति के सजीवोंं में व्यक्तिगत तथा आनुवांशिक भेद, सजीवोंं की जातियों के विविध प्रकार तथा विविध प्रकारों की परिसंस्थाएँ इन सभी के कारण उस स्थान पर प्रकृति को जो सजीवसृष्टि की समृद्धी प्राप्त हुई है उसे ही जैवविविधता कहते है । जैवविविधता यह तीन स्तरों पर दिखाई देती है ।
एक ही जाति के सजीवोंं में पाई जाने वाली विविधता को आनुवांशिक विविधता कहते है। उदा. प्रत्येक मनुष्य दूसरे की अपेक्षा थोड़ा भिन्न होता है। पुनरुत्पादन प्रक्रिया में सहभागी होनेवाले सजीवोंं में ये आनुवांशिक विविधता कम हुई तो धीरे-धीरे उस जाति के नष्ट होने का खतरा बना रहता है ।
एक ही प्रदेश में एक ही प्रजाति के प्राणियों में अथवा वनस्पतियों में भी विविध जातियॉं दिखाई देती है, उसे ही प्रजातियों की विविधता कहते हैं । प्रजाति विविधता में वनस्पती, प्राणी तथा सूक्ष्मजीव इनके विविध प्रकारों का समावेश होता है ।
प्रत्येक प्रदेश में अनेक परिसंस्थाओ का समावेश होता हैं । किसी प्रदेश के प्राणी तथा वनस्पती, उनका अधिवास तथा पर्यावरण में अंतर इनके संबंधो से परिसंस्था की निर्मिती होती है । प्रत्येक परिसंस्था के प्राणी, वनस्पती, सूक्ष्मजीव और अजैविक घटक भिन्न-भिन्न होते हैं । अर्थात प्राकृतिक तथा मानवनिर्मित इस प्रकार की भी दो स्वतंत्र परिसंस्थाऍं होती है ।
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