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फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम |
सोमवार, 28 दिसंबर 2020
परिनालिका में से प्रवाहित होनेवाली विद्युत धारा द्वारा निर्माण होनेवाला चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic field due to a current in a solenoid)
विद्युत अवरोधक आवरण वाली ताँबे की तार लेकर तार के फेरों से कुंड़ली तैयार करने पर बननेवाली रचना को परिनालिका (Solenoid) कहते हैं । परिनालिका में से विद्युत धारा प्रवाहित होनेपर निर्मित होनेवाली चुंबकीय बल रेखाओं की संरचना आकृति 4.9 में दर्शायी गई है । छड़चुंबक की चुंबकीय बलरेखाओं से आप परिचित है ही । परिनालिका द्वारा निर्मित होनेवाले चुंबकीय क्षेत्र के सभी गुणधर्म छड़चुंबकद्वारा निर्मित होनेवाले चुंबकीय क्षेत्र के गुणधर्मों के समान होते हैं । पलिनालिका का एक खुला सिरा चुंबकीय उत्तरी ध्रुव के रूप में तथा दूसरा चुंबकीय दक्षिण ध्रुव के रूप में कार्य करता है । पलिनालिका की चुंबकीय बल रेखाएँ परस्पर समांतर रेखाओं के स्वरूप में होती हैं । इसका क्या अर्थ होता है? यही कि चंुबकीय क्षेत्र की तीव्रता परिनालिका के आंतरिक भाग में सर्वत्र समान होती है, अर्थात परिनालिका के अंदर चुंबकीय क्षेत्र एक समान होता है ।
रविवार, 27 दिसंबर 2020
धातु-अधातु गुणधर्म (Metallic - Nonmetallic character)
1. आधुनिक आवर्त सारणी के तृतीय आवर्तका निरीक्षण कीजिए और उनका धातू एवं अधातुओं मे वर्गीकरण कीजिए ।
2. धातुएँ आवर्त सारणी के किस ओर है? बाएँ या दाएँ?
3. आपको अधातुएँ आवर्त सारणी के किस ओर दिखाई दिए ।
ऐसा दिखाई देता है की सोड़ियम, मॅग्नेशियम ऐसे धातु तत्त्व बाईं ओर है । सल्फर और क्लोरीन जैसे अधातु तत्त्व आवर्तसारणी के दाहिनी ओर हैं । इन दोनों प्रकारों के मध्य सिलिकॉन यह धातुसदृश तत्त्व है । इसी प्रकार का संबंध दूसरे आवर्तों मे भी दिखाई देता है ।
आधुनिक आवर्तसारणी में एक टेढ़ी-मेढ़ी रेखा धातुओं को अधातुओं से अलग करती है, ऐसा दिखाई देता है । इस रेखा के बाईं ओर धातु, दाईं ओर अधातु और रेखा के किनारों पर धातुसदृश इस प्रकार से तत्त्वों की आधुनिक आवर्तसारणी मे व्यवस्था की गई है ऐसा दिखाई देता है, यह किस कारण हुआ?
धातु और अधातुओं के विशिष्ट रासायनिक गुणधर्मो में अंतर करके देखें । सरल आयनिक यौगिकों के रासायनिक सूत्रों से ऐसा दिखाई देता है, कि उनमे पाया जानेवाला धन आयन यह धातु से तो ऋणआयन अधातु से बना है । इससे यह स्पष्ट होता है की धातु के परमाणु की प्रवृत्ती स्वयं के संयोजकता इलेक्ट्रॉन खोकर धनायन बनने की होती है, इसे ही परमाणु की विद्युत धनात्मकता कहते है । इसके विपरीत अधातुओं के परमाणु की प्रवृत्ती बाहर के इलेक्ट्रॉन संयोजकता कवच में ग्रहण कर ऋणायन बनने की होती है । हमने इसके पहले भी देखा है, की आयनों को निष्क्रीय गैसीय तत्त्वों का स्थाई इलेक्ट्रॉनिक संरूपण होता है । संयोजकता कवच मे से इलेक्ट्रॉन खोने की अथवा संयोजकता कवच मे इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की परमाणु की क्षमता कैसे निश्चित होती है? किसी भी परमाणु के सभी इलेक्ट्रॉन उनपर धनावेशित केंद्रक के कारण प्रयुक्त होनेवाले आकर्षण बल के कारण परमाणु मे स्थिर होते है । संयोजकता कवक के इलेक्ट्रॉन और परमाणु केंद्रक के बीच स्थित अांतरिक कवचों मे भी इलेक्ट्रॉन पाए जाने के कारण संयोजकता इलेक्ट्रॉनों पर आकर्षणबल प्रयुक्त करने वाला परिणामी केंद्रकीय आवेश यह मूल केंद्रकीय आवेश की अपेक्षा थोड़ा कम होता है । धातुओं में पाए जानेवाले संयोजकता इलेक्ट्रॉन की कम संख्या (1 से 3) तथा इन संयोजकता इलेक्ट्रॉनों पर प्रयुक्त होनेवाला कम परिणामी केंद्रकीय बल इन दोनों घटकों के एकत्रित परिणाम के कारण धातुओं में संयोजकता इलेक्ट्रॉन खोकर स्थाई निष्क्रीय गैसीय संरूपण वाला बनने की प्रवृत्ती होती है । तत्त्वों की यह प्रवृत्ती अर्थात विद्युतधनता अर्थात उस तत्त्व का धात्विक गुणधर्म है ।
आधुनिक आवर्त सारणी के स्थानाें से तत्त्वों के धात्विक गुणधर्मका आवर्ती झुकाव स्पष्ट रूप से समझ मे आता है।
सर्व प्रथम किसी एक समूह के तत्त्वों के धात्विक गुणधर्मपर विचार करके देखें । किसी एक समूह में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर नई कक्षा का निर्माण होकर केंद्रक और संयोजकता इलेक्ट्रॉन इनमें अंतर बढ़ता जाता है । जिसके कारण परणामी केंद्रकीय आवेश बल कम होकर संयोजकता इलेक्ट्रॉन पर पाया जानेवाला आकर्षण बल कम होता है । जिसके कारण संयोजकता इलेक्ट्रॉन खो देने की परमाणु की प्रवृत्ती बढ़ती जाती है । उसी प्रकार संयोजकता इलेक्ट्रॉन खो देने पर अंतिम कवच के पहले वाला कवच बाह्यतम कवच बन जाता है । यह कवच पूर्ण अष्टक होने के कारण बनने वाले धनायन को विशेष रूप से स्थिरता प्राप्त होती है । जिसके कारण इलेक्ट्रॉन खो देने की प्रवृत्तीऔर भी बढ़ती जाती है । जिसके कारण इलेक्ट्रॉन त्यागने की परमाणु की प्रवृत्ती अर्थात धात्विक गुणधर्म । किसी भी समूह में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर तत्त्वों के धात्विक गुणधर्म में वृद्धी होने की आनति/झुकाव दिखाई देता है ।
एक ही आवर्त में बाएँ से दाहिनी ओर जाने पर बाह्यतम कवच वही रहता है । परंतु केंद्रक मे धनावेशित आयन में वृद्धी होने से और परमाणु त्रिज्या कम-कम होने से प्रयुक्त होनेवाले परिणामी केंद्रकीय बल में भी वृद्धी होती है । जिसके कारण संयोजकता इलेक्ट्रॉन खो देने की परमाणु की प्रवृत्ती कम-कम होती जाती है । अर्थात्आवर्त मे बाएँ से दाहिनी ओर जाने पर तत्त्वों के धात्विक गुणधर्मकम-कम होते जाते है । (तालिका देखिए)
किसी एक आवर्त में बाएँ से दाहिनीओर जाने पर बढ़ने वाले केंद्रकीय आवेश बलऔर कम-कम होने वाली परमाणु त्रिज्या इन दोनों घटकों के कारण संयोजकता इलेक्ट्रॉनों पर प्रयुक्त होनेवाला परिणामो केंद्रकीय आवेश बल बढ़ता है और संयोजकता इलेक्ट्रॉन अधिकाधिक आकर्षण बल से बद्ध होते हैं । इसी को परमाणु की विद्युतऋणात्मकता कहते हैं । किसी एक आवर्त में बाएँ से दाहिनीओर जाने पर बढ़नेवाली विद्युतॠणात्मकता के कारण बाहर से इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर पूर्ण अष्टक स्थिती मे ऋणायन बनाने की परमाणु की क्षमता बढ़ती है । तत्त्वों की ऋणायन बनाने की प्रवृत्ती अथवा विद्युत ऋणता अर्थात तत्त्वों का अधात्विक गुणधर्म ।
शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020
न्यूलँड के अष्टकाें का नियम (Newlands’ Law of Octaves)
न्यूलँड के अष्टकाें का नियम (Newlands’ Law of Octaves)
अंग्रेज रसायन वैज्ञानिक जॉन न्यूलँड्स ने एक अलग ही मार्ग से परमाणु द्रव्यमान का सहसंबंध तत्त्वों के गुणधर्म से जोड़ा। सन 1866 में न्यूलैंड ने उस समय ज्ञात सभी तत्त्वों को उनके परमाणु द्रव्यमानों के आरोही क्रम में रखा । इसकी शुरूआत सबसे हल्के तत्त्व हाइड्रोजन तो अंत थोरियम इस तत्त्व से हुआ । उन्होंने पाया की प्रत्येक आठवें तत्त्व का गुणधर्म यह पहले तत्त्व के गुणधर्मके समान होता है । जैसे सोडियम यह लिथियम से आठवें क्रमांक का तत्त्व होकर इन दोनों के गुणधर्म समान है । उसी प्रकार मॅग्नेशियम की बेरीलियम से समानता है, तो फ्लोरिन की क्लोरीन के साथ समानता है । न्यूलैंड्स ने इस समानता की तुलना संगीत के अष्टक से की । उसने आठवें तथा पहले तत्त्व के गुणधर्म मे पाए जानेवाली समानता को अष्टक का नियम कहा है ।
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न्यूलँड के अष्टकाें का नियम (Newlands’ Law of Octaves) |
न्यूलैंड्स के अष्टक नियम में बहुत सारी त्रुटियाँ सामने आई । यह नियम केवल कॅल्शियम तत्त्व तक ही लागू होता है । न्यूलैंड ने ज्ञात सभी तत्त्वो को 7 x 8 इस 56 स्तंभो की सारणी में व्यवस्थित किया । ज्ञात सभी तत्त्वों को स्तंभो में समाविष्ट करने के लिए न्यूलैंडसने कुछ स्थानों पर दो-दो तत्त्वों को रखा । उदा. Co तथा Ni , Ce तथा La इसके अतिरिक्त उन्होने कुछ भिन्न गुणधर्मावाले तत्त्वों को एक ही स्वर के नीचे रखा । उदा. Co तथा Ni इन धातुओं को न्यूलैंडस ने डो इस स्वर के नीचे, Cl तथा Br इन हॅलोजनों के साथ रखा । इसके विपरीत Co तथा Ni इनसे समानता रखनेवाले Fe को उनसे दूर ‘O’ तथा S इन अधातुओ के साथ ‘टी’ इस स्वर के नीचे रखा उसी प्रकार नए खोजे गए तत्त्वों को समाविष्ट करने के लिए न्यूलैंड के अष्टक नियम में कोई प्रावधान नहीं था । कालांतर में खोजे गए नए तत्त्वों के गुणधर्म न्यूलैंड के अष्टक में लागू नहीं होते थे ।
गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)
गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)
सर आयझॅक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण की खोज की, यह आपको पता ही है । ऐसा कहा जाता है कि वृक्ष से नीचे गिरता हुआ सेब देखने के कारण उन्होंने यह खोज की । उन्होने सोचा कि सभी सेब (लंबवत दिशा में) सीधे नीचे ही क्यों गिरते हैं? तिरछे क्यों नही गिरते? या क्षितिज के समांतर रेखा में क्यों नहीं जाते?
अत्यंत विचारमंथन करने के पश्चात्उन्होंने निष्कर्ष निकाला की पृथ्वी सेब को अपनी ओर आकर्षित करती होगी और इस आकर्षण बल की दिशा पृथ्वी के केंद्र की ओर होगी । वृक्ष के सेब से पृथ्वी के केंद्र की ओर जानेवाली दिशा क्षैतिज के लंबवत होने के कारण सेब वृक्ष से क्षैतिज के लंबवत दिशा में नीचे गिरता है ।
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गुरुत्वाकर्षण बल की कल्पना और सेब एवं चंद्रमा पर लगनेवाला गुरुत्वीय बल |
आकृति में पृथ्वी पर सेब का एक वृक्ष दिखाया गया है । सेब पर लगनेवाला बल पृथ्वी के केन्द्र की दिशा में होता है अर्थात सेब के स्थान से पृथ्वी के पृष्ठभाग पर लंब होता है । आकृति में चंद्रमां और पृथ्वी के बीच का गुरुत्वाकर्षण बल भी दिखाया गया है । (आकृति में दूरियाँ, पैमाने के अनुसार नहीं दिखाई गई हैं । )
्यूटन ने सोचा कि यदि यह बल विभिन्न ऊँचाई पर स्थित सेबों पर प्रयुक्त होता है, तो क्या वह सेबों से बहुत दूर स्थित चंद्रमा जैसे पिंडो पर भी प्रयुक्त होता होगा? इसी प्रकार क्या यह सूर्य, ग्रह जैसे चंद्रमा से भी अधिक दूरी पर स्थित खगोलीय पिंडों पर भी प्रयुक्त होता होगा?
गुरुवार, 24 दिसंबर 2020
गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा (Gravitational potential energy)
गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा (Gravitational potential energy)
पिंड की विशिष्ट स्थिति के कारण या स्थान के कारण उसमें समाविष्ट ऊर्जाको स्थितिज ऊर्जाकहते हैं । यह ऊर्जा सापेक्ष होती है और पृष्ठभाग से पिंड की ऊँचाई बढ़ने पर वह बढ़ती जाती है, इसकी जानकारी हम प्राप्त कर चुके हैं । m द्रव्यमान तथा पृथ्वी के पृष्ठभाग से h ऊँचाई पर स्थित पिंड की स्थितिज ऊर्जा mgh होती है और पृथ्वी के पृष्ठभाग पर वह शून्य होती है, ऐसा हमने देखा है । h का मान पृथ्वी की त्रिज्या की तुलना में अत्यंत कम होने के कारण g का मान हम स्थिर मान सकते है और उपर्युक्त सूत्र का उपयोग कर सकते हैं । परंतु h का मान अधिक होने पर g का मान ऊँचाई के अनुसार कम होते जाता है । पिंड पृथ्वी से अनंत दूरी पर होने पर g का मान शून्य होता है और पिंड पर पृथ्वी का गुरूत्वीय बल कार्य नहीं करता । इस कारण वहाँ पिंड की गुरूत्वीय स्थितिज ऊर्जा शून्य मानी जाती है । अतः दूरी उससे कम होने पर स्थितिज ऊर्जा ऋण होती है ।
पिंड पृथ्वी के पृष्ठभाग से h ऊँचाई पर स्थित होने पर उसकी गुरूत्वी स्थितिज ऊर
गुरुत्वीय लहरें (Gravitational waves)
गुरुत्वीय लहरें (Gravitational waves)
पानी में पत्थर डालने पर उसमें लहरें निर्मित होती हैं, इसी प्रकार एक रस्सी के दोनों सिरों को पकड़कर हिलाने पर उसपर भी लहरे निर्मित होती हैं, यह आपने देखा ही होगा । प्रकाश भी एक प्रकार की तरंग है, उसे विद्युतचुंबकीय तरंग कहते हैं । गामा किरण, क्ष- किरण, पराबैंगनी किरण, अवरक्त किरण, माइक्रोवेव्ह और रेडिओ तरंग ये सभी विद्युतचुंबकीय तरंग के ही विविध प्रकार हैं । खगोलीय पिंड ये तरंगे उत्सर्जित करते हैं और हम अपने उपकरणों द्वारा उन्हें ग्रहण करते हैं । विश्व के बारे में संपूर्ण जानकारी हमें इन तरंगों के द्वारा प्राप्त हुई है । गुरूत्वीय तरंगे एकदम अलग प्रकार की तरंगे हैं, उन्हें अंतरिक्ष काल की तरंगे कहा जाता है । उनके अस्तित्व की संभावना आईनस्टीन 1916 में व्यक्त की थी । ये तरंगें अत्यंत क्षीण होने के कारण उन्हें खोजना अत्यंत कठिन होता है । खगोलीय पिंडों में से उत्सर्जित गुरूत्वीय तरंगों को खोजने के लिए वैज्ञानिकों ने अत्यंत संवेदनशील उपकरणों को विकसित किया है । इसमें LIGO (Laser Interferometric Gravitational Wave Observatory.) प्रमुख है । वैज्ञानिकों ने सन 2016 में आईनस्टाईन की भविष्यवाणी के 100 वर्षों के पश्चात गुरूत्वीय तरंगो की खोज की । इस शोध में भारतीय वैज्ञानिकों का योगदान है । इस शोध के द्वारा विश्व की जानकारी मिलने के लिए एक नया मार्ग खुल गया है ।
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